Wednesday, August 6, 2008

कुछ रंग और मैं बेरंग


जिंदगी किसी काली सियाही
से लिख रही है मुझको
कोइ मिट्टी का बर्तन हो जैसे
कुछ रंगों का इंतज़ार है जिसको

एक सौदा था
कुछ रंगों की ख्वाहिश थी
उन रंगों में एक काला भी था
ये ख्याल न रहा हमको

अब जिरह भी करूँ तो किस्से
अब वफाह की उम्मीद भी किस्से
मेरा जिंदा अब थक चला
एक बेबसी रही और बह चला
जहाँ ये भीढ़ ले जाए
कहाँ ये भीढ़ ले जाए
मैं खुद बे-निशाँ हूँ अबतो

मेरे हालात अब बेरंग हो चले
नाउम्मीद अब जुदा हो चले
तमन्ना भी हमें
बे-वफाह करारे है
उतरे है कांधों से
और तलाशे है किसी और को

कुछ आँसू और सूख गए
कुछ आँसू और भीग गए
एक सैलाब अब ऊफ्फान पे है
दिल का बाँध अब टूटे
ये खौफ में है
जिंदगी तेरी अनबन
मुझे मेहेंगी पढ़ी
खुशी न सही
एक मुस्कान ही दिला अब तो

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