Saturday, April 2, 2011

आज फिर जीने की तमन्ना है

सुबह सुबह आई रौशनी
मेरे बिस्तर तलक, छलक-छलक
कैसी चंचल कैसी मधुर
मीठी शहद सी दिखी
जब खोली आँखे पलक-पलक
आँगन खेले नन्हा सवेरा 
होंठो पे एक मुस्कान बिखेरा
बोली डाल पे बैठी मैना
ऐ सखी हम खेले आ इधर
देख निकला धुप का मेला
धीरे धीरे नींद है छूटी
हौले हौले अंगड़ाई भी टूटी
गुज़रे कल का अँधेरा वो भागा
मन संभला और दिल फिर थिरका
आज फिर जीने की तमन्ना है -
कहे मन का मोर 
और झूम के दिन यूँ डोला वो डोला

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