Thursday, January 17, 2008

कुछ ख़ास है...

कभी लगता है…
क्या ख़ास है इसमे
की एक नया साल आया है

कभी लगता है…
क्यों खुश हैं हम
की एक और इंतज़ार ख़त्म हुआ है

कभी लगता है…
झूठी उम्मीद है ये
की कुछ बदलेगा अब -
ये साल कुछ बदलने आया है

शायद…
उस दर्द, उस चोट को
पीछे छोड़ आया है
जहाँ वक्त ने छीनी
थी मुस्कान, तोड़े थे
सपने,
जहाँ सिर्फ़ गम
का सर्मायाह है

फ़िर लगता है…
कुछ ख़ास है इसमे
की एक नया साल आया है

शायद…
रूकती साँसे
फ़िर जगाने आया है
सूनी आँखें
फ़िर बोल उठें
रोते हुए बच्चे
फ़िर हस पढे
लुटे हुए बाज़ार को
उसकी रौनक
लौटाने आया है

हाँ अब लगता है
कुछ ख़ास है इसमे
की फ़िर एक नया साल आया है

मेरी आरज़ू है ये
मेरी दुआ कबूल कर
सबके आँगन में रौशनी हो
खुशियाँ सबके दर पे गूंजे
हर नयी सुबह
किसी हाथ की कटोरी
में नए रंग लाये
बस अब तेरी मेहर हो
और ये साल कुछ ख़ास हो जाए…