Sunday, September 23, 2012

कल आप मेरे साथ थे ...


चमकती शोर से भरी
सड़क पे बेसबब चलना 
अजीब लग रहा था  
सूखे पत्तों पे 
अपने पैरों की चाप सुनना 
अजीब लग रहा था 
कभी रुक कर कभी मुढ़ कर 
किसी चेहरे में आपको ढूंढना 
अजीब लग रहा था 

पर दिल खुश था, तनहा नहीं था 
ख्यालों में ही सही 
कल आप मेरे साथ थे ...

महफ़िल में शामिल हो कर 
ना शामिल होना 
अजीब लग रहा था 
किसी हसीन की हसी पे 
किसी की यादों में खो जाना 
अजीब लग रहा था 
जाम के मचलती बुलबुलों में 
अपनी दास्ताँ ढूंढना 
अजीब लग रहा था 

पर दिल खुश था, तनहा नहीं था 
ख्यालों में ही सही 
कल आप मेरे साथ थे ...

मेरी तन्हाई है 
उसमे बसा ख्यालों का क़स्बा है 
जहा यूँही मुलाकातें होती हैं 
जहाँ यूँही आपसे बातें होती हैं 
जाने कब ढल के शाम होती है 
जाने कब सपनों का शाम्याना सजता है 
यूँ बहारों का मिलना और आपका साथ होना 
कितना अच्छा लगता है 
ऐसा समां आज है और कल भी था 
इसलिए दिल खुश था, तनहा नहीं था 
ख्यालों में ही सही 
कल आप मेरे साथे थे ...


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