आज मौसम फिर भीग गया…
सर्द हवाएं कुछ कह रही हैं
दिल में कुछ अरमान फिर जाग उठे
आज उड़ने को जी करता है…
कहीं दूर बहुत दूर
इन बादलों पे सवार
हाथों में हाथ
कुछ परिंदों के साथ
दूर बहुत दूर उड़ने को जी करता है…
मीठा है बारिश का पानी
ठंडी है इसकी छुअन
इस पानी की थिरकन पे
कुछ गाने को दिल करता है
हवाओं के ज़ोर पे
दूर बहुत दूर उड़ने को जी करता है…
मैंने अपनी आंखें बंद करलीं
सिर्फ एक एहसास जगा रखा है
कभी खुशबू, कभी सौंधी ज़मीन
के होने का पता चलता है
इन दरख्तों की मस्ती में खेलूँ
झरने की किलकारियों से कहूं
आज सावन में भीगने को जी करता है
दूर बहुत दूर उड़ने को जी करता है…
बाहें फैलाये मैं खड़ा हूँ
हवाओं ने मुझे अपनी आगोश में लिया है
चेहरे पे टपकती बूंदे मुझे भिगो रही हैं
मेरे गम कतरा कतरा ज़मीन में बह रहे हैं
मैं ज़र्रा ज़र्रा खुश हो रहा हूँ
जैसे होश से जुदा होता है कोई
मैं अपनी बेहोशी में कुछ कह रहा हूँ
इस रस में भीग जाऊं आज
बे-फिक्र, बे-राह, बे-रोक
बस उड़ता चलूँ आज
दूर बहुत दूर…
कहीं दूर बहुत दूर…
Wednesday, June 11, 2008
भीगा भीगा मौसम
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5 comments:
बहुत खूबसूरत रचना. लिखते रहिये, रु-ब-रु कराते रहिये. शुभकामनायें.
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उल्टा तीर
स्वागत है आपका हिन्दी जगत पर
अच्छा लिख रहे है।
भीगे भीगे मौसम में
आपकी परवाज़ क़ामयाब हो.
बहुत प्यारी कविता है। बधाई स्वीकारें।
और हाँ एक निवेदन, कृपया कमेंट बॉक्स से वर्ड वेरीफिकेशन हटा दें, इससे इरीटेशन होता है।
बहुत खूब.
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